Manish S.
@5999999999
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मौन रहना सीख रहा हूं। पर सुनता हूं। चुपचाप सुनते रहना चाहता हूं। "सुनना" ध्यान का ही एक पर्याय है। एक और भी महत्वपूर्ण बात : क्रोध, अहंकार, दूसरों की निंदा, अपनी प्रशंसा सुनते समय, दुख के समय, अज्ञानता और ध्यान के समय मौन रखना आवश्यक है। अब ना तो मैं जीवन की प्रतिस्पर्धा में हूँ, ना ही मेरा कोई प्रतिद्वंद्वी है।